Third Pillar of Islam
WELCOME ZAKAT BOARD OF INDIA
इस्लाम में ज़कात देना एक महत्वपूर्ण धर्मिक आदान-प्रदान है और इसे एक मुस्लिम के लिए फर्ज (अनिवार्य) माना जाता है। ज़कात एक धार्मिक आदान-प्रदान है जिसका मकसद धन की पवित्रता बनाए रखना है और समाज में न्याय और सहानुभूति को बढ़ावा देना है।
ज़कात का मानदंड कुरान और हदीसों में स्पष्ट रूप से उपस्थित है। इसे व्यक्ति की सालाना कुल माल की निश्चित प्रतिशत के आधार पर देना होता है। यह प्रतिशत 2.5% है, अर्थात व्यक्ति को उसकी सालाना कमाई का 2.5% आल्लाह के नाम पर देना होता है।
ज़कात देने का सिद्धांत यह है कि जो व्यक्ति अल्लाह के द्वारा उसे दिया गया धन कमाता है, उसे उसके खुदा की इच्छा के अनुसार गरीबों, अनाथों, यतीमों, और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के साथ साझा करना चाहिए। यह एक समर्थन है कि समृद्धि और समाज में न्याय के साथ जीवन जीने का तरीका है।
इस्लाम में, ज़कात को रमजान महीने के दौरान अदा करने की भी खास ताक़त है, लेकिन इसे पूरे इस्लामिक वर्ष में अदा किया जा सकता है। **********************************************************************
زکوٰۃ دینا اسلام میں ایک اہم مذہبی تبادلہ ہے اور اسے ایک مسلمان کے لیے فرض (فرض) سمجھا جاتا ہے۔ زکوٰۃ ایک مذہبی تبادلہ ہے جس کا مقصد مال کی حرمت کو برقرار رکھنا اور معاشرے میں انصاف اور ہمدردی کو فروغ دینا ہے۔
زکوٰۃ کا معیار قرآن و احادیث میں واضح طور پر موجود ہے۔ یہ شخص کی سالانہ خالص مالیت کے ایک خاص فیصد کی بنیاد پر دیا جانا ہے۔ یہ فیصد 2.5% ہے یعنی ایک شخص کو اپنی سالانہ آمدنی کا 2.5% اللہ کے نام پر دینا پڑتا ہے۔
زکوٰۃ دینے کا اصول یہ ہے کہ جو شخص اللہ تعالیٰ کا دیا ہوا مال کماتا ہے اسے اللہ کی مرضی کے مطابق غریبوں، یتیموں، یتیموں اور معاشی طور پر کمزور لوگوں کے ساتھ بانٹنا چاہیے۔ یہ اس بات کی توثیق ہے کہ معاشرے میں خوشحالی اور انصاف کے ساتھ زندگی گزارنے کا طریقہ موجود ہے۔
اسلام میں زکوٰۃ کو رمضان کے مہینے میں ادا کرنے کی ایک خاص طاقت بھی ہے، لیکن یہ پورے اسلامی سال میں ادا کی جا سکتی ہے۔۔
Zakat on Agricultural Products
इस्लाम में, कृषि उत्पादों पर ज़कात को “ज़कात अल-माज़र” या “प्रोड्यूस पर ज़कात” कहा जाता है। यह किसी विशेष स्थिति में निर्धारित कृषि उत्पादों पर लागू होने वाला एक अनिवार्य चंदा है। कृषि उत्पादों पर ज़कात इस्लाम के कुरान और पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की आदतों से आती है।
اسلام میں زرعی مصنوعات پر زکوٰۃ کو “زکوۃ المزار” یا “پیداوار پر زکوۃ” کہا جاتا ہے۔ یہ ایک لازمی عطیہ ہے جس کا اطلاق کسی خاص صورتحال میں طے شدہ زرعی پیداوار پر ہوتا ہے۔ زرعی مصنوعات پر زکوٰۃ اسلام کے قرآن اور نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کی عادات سے آتی ہے۔
Is Zakat payable on Gold OR Silver
हाँ, इस्लाम में ज़कात सोने और चांदी पर देना फर्ज (अनिवार्य) है। इसे “ज़कात अल-माल” या “वेल्थ टैक्स” भी कहा जाता है।
सामान्यत: सोने और चांदी के ज़कात की दर 2.5% है, यानी कि जब तक कोई व्यक्ति इन मेटल्स के संपत्ति का मालिक है और उसका माल निसाब (न्यूनतम संपत्ति की सीमा) से अधिक है, तब उसे इसका 2.5% चंदा देना होता है। यह चंदा वर्षभर में एक बार दिया जाता है और इसे इस्लामी वितरण के लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि गरीबों, यतीमों, अनाथों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद के लिए।
ہاں سونے چاندی کی زکوٰۃ ادا کرنا اسلام میں فرض ہے۔ اسے “زکوۃ المال” یا “دولت ٹیکس” بھی کہا جاتا ہے۔
عام طور پر سونے اور چاندی پر زکوٰۃ کی شرح 2.5% ہوتی ہے، یعنی جب تک کوئی شخص ان دھاتوں میں جائیداد کا مالک ہو اور اس کی دولت نصاب (کم از کم دولت کی حد) سے زیادہ ہو تو اسے اس میں سے 2.5% صدقہ کرنا ہوگا۔ یہ عطیہ سال میں ایک بار دیا جاتا ہے اور اسے اسلامی تقسیم کے مقاصد کے لیے استعمال کیا جاتا ہے، جیسے کہ غریبوں، یتیموں اور معاشی طور پر کمزوروں کی مدد کرنا۔
Zakat AL Fitrah
ज़कात अल-फित्र ईद के दिन के पहले तीन दिनों में अदा की जाती है और इसे “फित्र चंदा” भी कहा जाता है। यह ज़कात विशेष रूप से ईद के दिन मुसलमानों के लिए योग्यता रखने के लिए होती है और इसका मकसद ज़कात देने वाले की अदा ईद के दिन तक पूर्ण होता है ताकि उसकी ईबादत और चारित्रिक समृद्धि में कोई रुकावट ना हो। ज़कात अल-फित्र को बच्चों, बूढ़ों, ग़रीबों और नीदयांत्रित लोगों के लाभ के लिए दिया जाता है। عید کے دن کے پہلے تین دنوں میں زکوٰۃ ادا کی جاتی ہے اور اسے “فطر چندہ” بھی کہا جاتا ہے۔ یہ زکوٰۃ خاص طور پر مسلمانوں کے لیے عید کے دن تک اہل یت حاصل کرنے کے لیے ہے اور اس کا مقصد عید کے دن تک ادا کرنے والے کو زکوٰۃ کی ادائیگی مکمل کرنا ہے تاکہ اس کی عبادت اور کردار کی خوشحالی میں کوئی رکاوٹ پیدا نہ ہو۔ زکوٰۃ فطر بچوں، بوڑھوں، مسکینوں اور مسکینوں کے فائدے کے لیے دی جاتی ہے۔
ISLAMIC BANKING
इस्लामिक बैंकिंग, एक विशेष प्रकार की वित्तीय सेवा है जो इस्लामी वित्तीय सिद्धांतों, शरीआती निर्देशों और इस्लामी नैतिकता के अनुसार काम करती है। इसका मुख्य उद्देश्य ब्याज़ या सुद की प्रणाली के खिलाफ होना है और इसे इस्लामी न्याय, सहानुभूति, और न्याय के सिद्धांतों के साथ मिलाने का प्रयास करता है।
इस्लामी बैंकिंग की परिभाषा-
रिबा के खिलाफ: इस्लामी बैंक रिबा (ब्याज़ या सुद) की प्रणाली का खुला खिलाफ है, क्योंकि यह कुरान में हराम घोषित है। इसके बजाय, इस्लामी बैंकों में मुदारबह और मुराबहा जैसे अन्य वित्तीय साधनों का उपयोग किया जाता है जो रिबा-मुक्त होते हैं। इस्लामी बैंकिंग का सिद्धांत यह है कि वित्तीय सेवाएं इस्लामी सिद्धांतों और नैतिकता के साथ मेल खाकर समृद्धि और सामाजिक न्याय की दिशा में मदद करें!
اسلامی بینکاری کی تعریف
سود کے خلاف: اسلامی بینک کھلے عام ربا (سود یا سود) کے نظام کے خلاف ہیں، جیسا کہ قرآن مجید میں اسے حرام قرار دیا گیا ہے۔ اس کے بجائے، اسلامی بینک دوسرے مالیاتی آلات استعمال کرتے ہیں جیسے مضاربہ اور مرابحہ جو سود سے پاک ہیں۔ اسلامی بینکاری کا اصول یہ ہے کہ مالیاتی خدمات اسلامی اصولوں اور اخلاقیات کے مطابق ہو کر خوشحالی اور سماجی انصاف کی طرف مدد کریں۔